वेब होस्ट या वेब होस्टिंग क्या है?

वेब होस्टिंग उस स्टोरेज को कहा जाता है जिस पर कोई संस्था या आप और में अपनी वेबसाइट की फाइल्स को सेव करके रखता है, ताकि डोमेन नेम के द्वारा वो वेबसाइट का डाटा सब तक पहुच सके।

होस्टिंग सर्विस, वेब होस्टिंग कंपनी द्वारा मुहिया कराई जाती है वेब होस्टिंग सर्विस प्रोवाइडर लेटेस्ट टेक्नोलॉजी और इन्टरनेट की सहायता से वेबसाइट और वेबपेज को इन्टरनेट द्वारा लोगो तक पहुँचाते हैं। सभी वेबसाइट और उस पर उपलब्ध कंटेंट स्पेशल कंप्यूटर्स में सेव किया जाता है जिन्हें सर्वर कहा जाता है।

वेब होस्ट को आपकी वेबसाइट के डाटा तक पहुच बनाने के लिए डोमेन नेम की आवश्यकता पड़ती है इसलिए ज्यादातर होस्टिंग प्रोवाइडर डोमेन नेम भी बेचते हैं।

होस्टिंग प्रोवाइडर कई तरह के होस्टिंग प्लान्स प्रोवाइड करते हैं जो की अलग अलग डिमांड के अनुसार होती है। किसी पर्सनल वेबसाइट के लिए कम वेब स्पेस और बैंडविथ प्लान्स होता है और बिज़नस वेबसाइट के लिए ज्यादा वेब स्पेस और बैंडविथ ऑफर की जाती है।

आइये समझे होस्टिंग कितने प्रकार की होती है और वो क्या है जो इनको एक दूसरे से अलग बनाता है।

वेब होस्टिंग के प्रकार – Types of Web Hosting

शेयर्ड वेब होस्टिंग (Shared Web Hosting)

जैसा की नाम से ही समझ आ रहा है ऐसी होस्टिंग जो साझा की जा रही हो इस वेब होस्टिंग में कई वेबसाइट्स एक ही सर्वर में सेव की जाती हैं और वो आपस में सिस्टम रिसोर्सेज़ को साझा करती हैं ताकि सर्वर की लागत को आपस में बाँट कर होस्टिंग का खर्च कम किया जा सके।

जैसे की आपको कही जाना हो और आपका फ्रेंड भी उसी तरफ जा रहा हो तो आप कार में लगने वाले तेल के रुपये आपस में बाँट कर खर्च आधा आधा कार लेते हैं।

उसी प्रकार शेयर्ड होस्टिंग में खर्च कई कस्टमर्स में बाँट दिया जाता है और आपको होस्टिंग का कम पैसा देना पड़ता है। इसीलिए पर्सनल ब्लॉग, और बिज़नस वेबसाइट के लिए ये सबसे सस्ती और अच्छी होस्टिंग मानी जाती है।
अब इसके कुछ डिसएडवांटेज भी होते हैं जैसे की आपकी वेबसाइट का किसी दूसरी वेबसाइट के कारण स्लो हो जाना या लोड ना होना हालाँकि ऐसा बहुत ही कम होता है।

डेडिकेटेड होस्टिंग (Dedicated Web Hosting)

डेडिकेटेड होस्टिंग में सारे सिस्टम रिसोर्स जैसे की सर्वर, स्टोरेज और बैंडविड्थ सिर्फ आपकी वेबसाइट के लिए उपलब्ध कराई जाती है। इसमे किसी और यूजर की वेबसाइट के लिए आपका सर्वर शेयर नहीं किया जाता है इसी वजह से इसकी कॉस्टिंग ज्यादा पड़ती है और आपको डेडिकेटेड होस्टिंग के लिए ज्यादा रकम चुकानी पड़ती है।

ये होस्टिंग उन वेबसाइट्स के लिए अच्छी होती है। जिन्हें ज्यादा सिस्टम रिसौर्स की आवश्यकत पड़ती है और अतिरिक्त सिक्योरिटी लेवल की जरुरत पड़ती है यानि की ऐसी वेबसाइट्स जिन्हें कई कस्टमर विजिट करते हैं। जैसे फेसबुक, ट्विटर।

वर्चुअल प्राइवेट सर्वर (VPS – Virtual Private Server)

ये वेब होस्टिंग उन यूज़र्स के लिए होती है जो ज्यादा उन्नत यानि की एडवांस्ड यूजर होते हैं जो कोई खास तरह की स्क्रिप्ट या एपलीकेशन सर्वर पर इनस्टॉल करना चाहते हैं। साथ ही जो अपने इनस्टॉल किये गए प्रोग्राम पर पूरी एक्सेस पाना चाहते हैं।

शेयर्ड होस्टिंग की तरह इसमें भी वेब स्पेस और सर्वर कई वेबसाइट के साथ साझा किया जाता है पर शेयर्ड होस्टिंग की तुलना में कम वेबसाइट ही एक सर्वर में सेव की जाती है।

रिसेलर होस्टिंग (Reseller Hosting)

जैसा की नाम दर्शाता है रिसेल यानि की दोबारा बेचीं जा सकने वाली होस्टिंग इसमें लिया गया वेब स्पेस आप कई लोगों को बेच सकते हैं। वो भी अलग अलग तरह के प्लान्स बना क़र यानि आप खुद एक वेब होस्टिंग प्रोवाइडर बन सकते हो, ये वेबहोस्टिंग उन वेब मास्टर्स के लिए अच्छी होती है। जो कई सारी वेबसाइट बनाते हैं और इसके द्वार एक ही कंट्रोल पैनल के अंदर उनसबको मैनेज क़र सकते हैं।

फ्री वेब होस्टिंग (Free Web Hosting)

आजकल कई होस्टिंग प्रोवाइडर फ्री वेब स्पेस भी ऑफर करते हैं। जिसमे की लिमिटेड बैंडविड्थ और स्पेस दिया जाता है जिसमे आप कोई सिंपल html वेबसाइट बना सकते हैं। ये ऑफर नए कस्टमर अट्रैक्ट करने के लिए ऑफर किया जाता है ताकि आप उनकी होस्टिंग ट्राय क़र सकें और काम्प्लेक्स या हैवी वेबसाइट बनाने पर उनका कोई अपग्रेडेड प्लान खरीदें।

साथ है कुछ होस्टिंग प्रोवाइडर फ्री सब डोमेन भी ऑफर करते हैं, कुछ आपका कस्टम डोमेन नेम भी यूज़ करने देते हैं। जैसे yourdomain.webhosting.com

4 या 5 पेज की वेबसाइट के लिए आप ये होस्टिंग ट्राय क़र सकते हैं। लेकिन इसके कुछ डिसएडवांटेज भी होते हैं। जैसे स्लो वेबसाइट लोड, लिमिटेड स्पेस और बैंडविड्थ, मल्टी टाइम वेबसाइट क्रैश, या विज्ञापन पॉपअप जैसी कुछ प्रॉब्लम का सामना करना पड़ सकता है।

क्लाउड वेब होस्टिंग (Cloud Web Hosting)

ये होस्टिंग का नया प्रकार है जिसमे एक वेबसाइट और उसका कंटेंट कई सर्वर्स पर सेव होता है ताकि कम लोड वाले और यूजर के सबसे नजदीकी सर्वर से वेबसाइट का डाटा यूजर तक पहुच सके। जिसकी वजह से एक ही सर्वर पर ज्यादा लोड नहीं पड़ता है और वेबसाइट जल्दी और बिना क्रैश हुए यूजर के कंप्यूटर पर लोड हो जाती है।

मान लीजिये कोई सर्वर अमेरिका में है और उसका दूसरा सर्वर चीन मैं है। अब अगर इंडिया का यूजर उस वेबसाइट को एक्सेस करता है, तो वेबसाइट चीन के सर्वर से लोड हो जाएगी ताकि वेबसाइट की स्पीड फ़ास्ट बानी रहे पर अगर चीन का सर्वर किसी वजह से काम नही कर रहा हो तो वही वेबसाइट का डाटा अमेरिका से लोड हो जायेगा। अब इसका फायदा ये है की अगर एक सर्वर खराब भी हो जाये तब भी आपकी वेबसाइट इन्टरनेट पर उपलब्ध रहेगी।

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